उदयपुर जिले में पंचायती राज चुनाव की सरगर्मियां तेज है।
उदयपुर जिले में पंचायती राज चुनाव की सरगर्मियां तेज है। एक तरफ कोरोना का खतरा है। दूसरी तरफ चुनाव कराने की संवैधानिक अनिवार्यता है। इसलिए इन चुनावों में लोक स्वास्थ्य आपातकाल एवं संवैधानिक अनिवार्यता के बीच एक संतुलन बनाए रखना चुनाव आयोग के साथ उम्मीदवारों के लिए बड़ी चुनौती है। लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि भारत में पंचायती राज की व्यवस्था की नींव कैसे पड़ी ? किस तरह कराए जाते हैं चुनाव ? जनता किन- किन संस्थाओं के लिए चुनती है जनप्रतिनिधि ? द लोकल समाचार आपको अवगत करा रहा है पंचायती राज चुनाव की व्यवस्था से। महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के विचारों का मूर्त रूप है पंचायती राज व्यवस्था। भारत में प्रथम ग्राम पंचायत की शुरुआत का गौरव राजस्थान को प्राप्त है। 2 अक्टूबर 1959 यानी महात्मा गांधी की जयंती पर राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत पंडित नेहरू ने की थी। तब राजस्थान के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया थे। संविधान में पंचायती राज व्यवस्था त्रिस्तरीय है जिसकी सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत है। विभिन्न ग्राम पंचायतों का समूह पंचायत समिति का निर्माण करता है जो प्रायः ब्लॉक स्तर पर होती है। इस व्यवस्था के शीर्ष पर जिला परिषद है। प्रत्येक स्तर के चुनाव प्रत्यक्ष मतदान द्वारा होते हैं। भारत के मूल संविधान में पंचायती राज की औपचारिक संरचना का कोई जिक्र नहीं था। 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायती राज व्यवस्था को पूरे भारत में एक रूप बनाते हुए संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। प्रत्येक 5 वर्ष में पंचायती राज व्यवस्था के प्रत्येक स्तर के चुनाव करवाए जाते हैं। इन चुनावों का नियंत्रण, अधीक्षण एवं पर्यवेक्षण राज्य चुनाव आयोग करता है। यहां स्पष्ट कर दें कि स्थाई निकाय के लिए चुनाव करने वाले राज्य चुनाव आयोग का केंद्रीय चुनाव आयोग से कोई संबंध नहीं है। राज्य चुनाव आयोग के प्रमुख या राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है लेकिन उन्हें हटाने का अधिकार केवल भारतीय संसद के पास है क्योंकि राज्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया हाईकोर्ट के न्यायाधीश के समान है यानी इस पद को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की गई है। हालांकि राज्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल एवं सेवा शर्ते अलग-अलग राज्यों में अलग अलग होते हैं क्योंकि इनके निर्धारण का अधिकार राज्य सरकारों को है। संविधान में जिला परिषद, पंचायत समिति एवं गांव पंचायत की संरचना एवं कार्यों की अलग-अलग रूप रेखा दी है। जिला परिषद के प्रमुख को जिला प्रमुख कहा जाता है। पंचायत समिति के मुखिया को प्रधान कहा जाता है। ग्राम पंचायत का मुखिया को सरपंच कहा जाता है। इसके अतिरिक्त ग्राम पंचायत में पंच व सरपंच तथा जिला परिषद एवं पंचायत समिति सदस्यों का चुनाव जनता सीधे करती है। पंचायत समिति के प्रधान और उपप्रधान, जिला परिषद के जिला प्रमुख और उप जिला प्रमुख का निर्वाचन सदस्य करते हैं। इन चुनावों में मान्यता प्राप्त दलों के चुनाव चिन्ह का इस्तेमाल नहीं होता लेकिन ये चुनाव दलीय राजनीति से प्रेरित होता है।