मनीष कोठारी . उदयपुर. दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनी वैश्विक संस्थाओं में विकासशील देशों की आवाज हुई अनसुनी, अब 4 सालों तक जी-20 का नेतृत्व करेंगे विकासशील देश। ये बात भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के सचिव और G-20 के ऑपरेशन हैड मुक्तेश परदेशी ने कहीं। वे मंगलवार को लीला पैलेस स्थित मीडिया सेंटर में मीडिया से मुखातिब हुए। मुक्तेश परदेशी ने कहा G-20 एक ऐसा मंच है जहां ग्लोबल साउथ के मुद्दों एवं चिंताओं को आवाज मिलती है। हर देश यह चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय एवं वैश्विक संस्थाओं में लिए जाने वाले निर्णयों में उनकी भी भागीदारी हो, उनकी चिंताओं को भी समझा जाए। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनी संस्थाओं जैसे पी5, जी-7, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में ग्लोबल साउथ की आवाज इतनी मुखर नहीं रही। जी-20 के इतिहास में यह पहला अवसर है जब ग्लोबल साउथ के 4 देश लगातार 4 साल तक जी20 की अध्यक्षता करेंगे। 2022 में इंडोनेशिया ने अध्यक्षता की। 2023 का शिखर सम्मेलन भारत के अध्यक्षता में होगा, फिर 2024 में ब्राज़ील और 2025 में दक्षिण अफ्रीका की अध्यक्षता में G-20 शिखर सम्मेलन आयोजित होंगे। आतंकवाद के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि G-20आम तौर पर आर्थिक एवं वित्तीय मामलों पर चर्चा का मंच है। आतंकवाद एवं काउंटरटेररिज्म से जुड़े मामलों पर संयुक्त राष्ट्र में चर्चा होती है।
उदयपुर में G-20 की शेरपा बैठक में सांस्कृतिक कूटनीति का अपना महत्व है। शेरपाओं के लिए राजस्थान की सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, संगीत राजस्थानी भोजन के परिणामस्वरूप राजस्थानी संस्कृति एवं पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा
क्या है ग्लोबल साउथ
सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं एवं राजनीतिक संस्कृति के आधार पर समूचे विश्व को ग्लोबल नॉर्थ एवं ग्लोबल साउथ में विभाजित किया जाता है।
ग्लोबल साउथ एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल अक्सर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों की पहचान करने के लिए किया जाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो ग्लोबल साउथ में वे देश सम्मिलित हैं उत्तरी अमेरिका एवं यूरोप महाद्वीप की परिधि से बाहर है।
ग्लोबल साउथ की अवधारणा का प्रयोग आमतौर पर अंतर सरकारी संगठनों में विकास के मुद्दों पर चर्चा के दौरान किया जाता है। ग्लोबल साउथ में अधिकांश ऐसे देश आते हैं जो आर्थिक रूप से विकासशील एवं राजनीतिक रूप से बेहतर स्थिति में नहीं है। इन देशों पर पूंजीवादी आर्थिक नीतियों का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इनमें अधिकांश देश निम्न आय वर्ग के हैं। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद जिन देशों को तृतीय विश्व के देश कहा जाता था उन्हें कि ग्लोबल साउथ कहा जाने लगा।